क्या है पूर्व सांसद आनंद मोहन के परिहार को लेकर सरकारी झूठ
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क्या है पूर्व सांसद आनंद मोहन के परिहार को लेकर सरकारी झूठ

क्या है पूर्व सांसद आनंद मोहन के परिहार को लेकर सरकारी झूठ

क्या है पूर्व सांसद आनंद मोहन के परिहार को लेकर सरकारी झूठ

बिहार सरकार के प्रभारी गृहमंत्री बिजेंद्र यादव ने कैसे कहा कि नहीं मिल सकता है परिहार

पटना (बिहार) : कानून और जेल मैनुअल के आधार पर, पूर्व सांसद आनंद मोहन को कारावास के शुरुआती समय से लेकर 2021 तक परिहार मिलता रहा है। वर्ष 2019 में पूर्व सांसद आनंद मोहन सहित बिहार के किसी भी जेल में बंद बंदियों को परिहार का लाभ नहीं मिला है। 2019 के परिहार में कुछ तकनीकी कारण हैं, जिसे बहुत जल्द निपटाने की बात कारा प्रशासन के उच्चाधिकारी कर रहे हैं। बिहार सरकार ने बंदियों को मिलने वाले परिहार को लेकर 2012 में अपना कानून बनाया, जिसमें लोक सेवकों की हत्या में सजायाफ्ता बंदियों को परिहार नहीं दिए जाने की व्यवस्था की। यह राजकीय कानून किसी भी प्रदेश में नहीं है। इस राजकीय कानून को लेकर पटना हाईकोर्ट ने 2017 में, बिहार सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि अपराध, चाहे कितना भी जघन्य क्यों ना हो, फिर भी बन्दी को उनके परिहार के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। यानि, बंदियों को परिहार मिलना ही मिला है। हद बात तो यह है कि बिहार सरकार 2012 में बने, अपने कानून का हवाला दे रही है। सरकार को इतना भी पता नहीं है कि आनंद मोहन को सजावार 2007 में किया गया। सरकार का यह कानून, वैसे भी लागू नहीं होता है। लेकिन सबसे खास बात तो यह है कि आनंद 2021 तक का परिहार मिल चुका है। गौरतलब है कि पूर्व सांसद आनंद मोहन ने सजा के दौरान, जिस-जिस जेल में समय बिताए हैं, उन-उन जेल के अधीक्षक ने राज्य मुख्यालय के नेल विभाग को जो रिपोर्ट सौंपी है, उसके मुताबिक बन्दी आनंद मोहन का कारा में आचरण बेहद संतोषप्रद रहा है। इनके द्वारा कारा में शांति व्यवस्था, रचनात्मक कार्य, सकारात्मक गतिविधियों और सौंदर्यीकरण में इनकी भूमिका अहम रही है। साथ ही, आनंद मोहन के द्वारा कारा में, अनेकों तरह के पेड़-पौधे, फूल लगाना, कारा की स्वच्छता में अहम भूमिका निभाने के साथ-साथ, इनके द्वारा कई उत्कृष्ट पुस्तकों की रचना की गई है। कारा के अंदर होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम, वाद- विवाद प्रतियोगिता, योग और खेल-कूद आदि के आयोजनों में, इनकी विशेष अभिरुचि और योगदान रहा है। सबसे खास बात यह है कि आनंद मोहन, कारा में अनुशासनात्मक माहौल बनाये रखने में कारा प्रशासन को भरपूर सहयोग करते रहे हैं। गौरतलब है कि 14 वर्ष की सजा अवधि पूरी होने से पहले, प्रोबेशन पदाधिकारी सहरसा के द्वारा प्रतिवेदित किया गया है कि आनंद मोहन की कारा मुक्ति के पश्चात, पुनर्वास की कोई समस्या प्रतीत नहीं होती है। समय पूर्व इनकी रिहाई का लाभ देने पर सहानुभूति पूर्वक विचार किया जा सकता है। सहरसा पुलिस अध्य्क्ष के द्वारा ऑर्टिवेदित किया गया है कि पूव सांसद आनंद मोहन के असमय कारा मुक्ति से किसी प्रकार का प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भवना नहीं है। अतएव, आनंद मोहन को असमय कारा मुक्ति हेतु, अनुशंसा की जाती है। बेहद दीगर बात है कि तमाम अनुशंसाओं के बाद, 5 अक्टूबर 2021 को पटना जिला सत्र न्यायाधीश सत्येंद्र पांडेय ने अपने आदेश में लिखा है कि तमाम अनुशंसाओं के आलोक में पूर्व सांसद आनंद मोहन को बिहार सरकार के आग्रह पर मुक्त किया जा सकता है। यानि आनंद मोहन की रिहाई में बाधक, सिर्फ और सिर्फ बिहार सरकार है।
मुकेश कुमार सिंह